Thursday 9 May 2019

सहायक शिक्षक ने की स्कुल की काया पलट

बदलाव की शुरुआत एक व्यक्ति से होती है और समाज तभी आगे बढ़ता है जब बदलाव आता है। सहायक शिक्षक ने एक स्कुल की काया पलट ऐसे की है जैसे कोई सोच भी नही सकता।


जिले के गंजडुंडवारा विकास खंड़ क्षेत्र के गांव पिथनपुर भोजपुर के जूनियर प्राथमिक विद्यालय अब सरकारी स्कूल से मोर्डन स्कुल बन गया है। इस विद्यालय को सहायक शिक्षक आंनद मोहन ने अपने बिना स्वार्थ के विद्यालय के लिए पांच लाख रूपये खर्च कर दिये। आंनद मोहन बतातें है कि उनके स्वर्गीय पिता रामौतार गुप्त और उनके स्वर्गीय दादा की इच्छा थी कि कमाई का पांच लाख रूपये धर्म के काम में लगाया जाए, पहले आनंद मोहन ने गंजडुंडवारा के सरस्वती शिशु मंदिर में रूपये लगाने चाहे, लेकिन शिशु मंदिर की कमेटी ने पैसा लेने से मना कर दिया था। इसके बाद में आनंद मोहन ने उन रूपयो को अपने स्कूल में लगाने का मन बना लिया। अब यह स्कूल आस पास के जनपदों में भी नहीं है। इस स्कूल का नाम जूनियर प्राथमिक मॅाडल विद्यालय पड़ चुका है।

शिक्षक आनंद मोहन का कहना है की दो-स्कूल के बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सीखने और आगे बढ़ाने के लिए खेलकूद और शिक्षा संबंधित सामान जुटाये गए हैं, इनमें किक्रेट, टेनिस, लूडो, चेस आदि के अलावा विज्ञान प्रयोगशाला, कम्प्यूटर लैब भी हैं। साथ ही इस विद्यालय की पेंटिंग और चित्रकारी राया मथुरा के प्रसिद्ध पीसीएस अखिलेश कुमार दीक्षित ने की।

तीन जिले के अन्य शिक्षकों के लिए आनंद मोहन मिसाल बने हुए हैं। समय से स्कूल पहुंचना और छात्रों की पढ़ाई-लिखाई के साथ ही अन्य गतिविधियां विद्यालय में संचालित करने से क्षेत्र की जनता में खुशी का माहौल है। जिले के दूर-दराज क्षेत्रों में जहां शिक्षक समय से स्कूल नहीं पहुंचते, वहीं अध्यापक आनंद मोहन घर से प्रातः साढे छह बजे चलकर स्कूल पहुंच जाते हैं और फिर साफ-सफाई करवाकर बच्चों को स्वास्थ्य रखने के लिए व्यायाम भी सिखाते हैं। पाठ पढ़ाते हैं। इसके साथ ही छात्रों के लिए उन्होंने अपने संसाधनों पर कम्प्यूटर उपलब्ध कराया है और प्रोजेक्टर के माध्यम से छात्रों की पढ़ाई होती है। यह जनपद का एक ऐसा बेसिक सरकारी विद्यालय है, जहां छात्रों को प्रोजेक्टर से पढ़ाया जा रहा है। छात्र भी बड़ी लगन के साथ पढ़ाई करते हैं। इस विद्यालय की छात्रा अंजली कुमारी से बात की उन्होंने बताया कि वह डॅाक्टर बनाने की तैयारी करने के लिए अपने गांव का विद्यालय छोड़कर तीन किलोमीटर चलकर पढ़ने आती है।

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