Sunday 2 June 2019

जाने सावित्री पूजा के बारे में

ज्येष्ठ माह के सोमवती अमावस्या के शुभ अवसर पर सोमवार को सुहागिनों द्वारा वट सावित्री पर्व अपनी सुहाग को कामयाब रखने व पति के लम्बे उम्र के साथ स्वस्थ जिन्दगी की कामना के साथ पूजा अर्चना कर ईश्वर से प्रार्थना की।

इस अवसर पर मंदिर के पुरोहित जितेंद्र कुमार पाण्डेय ने बताया कि सोमवार का दिन सौभाग्य पाने का दिन होता है। भोलेनाथ के इस दिन पढ़ने वाले हर व्रत और पर्व का बहुत महत्व होता है इसलिए इस दिन की पूजा अर्चना करने से जीवन में बहुत से बदलाव देखने को मिलते हैं। उन्होंने बताया कि वट वृक्ष पूजा एक जमाने में राजकुमारी सावित्री द्वारा अपने पति के धर्म राज यमराज के द्वारा मृत्यु उपरांत प्राण लौटाने में सफलता के स्मृति में मनाये जाने की परम्परा है। इसके साथ हीं मान्यता है कि वट वृक्ष के जङ में भाग्य विधाता ब्रह्मा जी, तने में पालन कर्ता भगवान विष्णु व तने एवं पत्तियों में भगवान शिव का निवास होता है। जिससे वट वृक्ष पूजा में त्रिदेवों की एक साथ पूजन हो जाती है जो अति फलदायी होता है।


उन्होंने बताया कि कथा के अनुसार सत्यवान के प्राण ले जाते समय धर्म राज यमराज से सावित्री अपने पति के प्राण को लौटाने की विनती करती है। परन्तु धर्मराज जब किसी भी तरह मानने के लिए तैयार नहीं होते है और प्राण लौटाने के अलावा कोई भी मुँह माँगी अन्य वरदान देने को तैयार हो जाते हैं तो सावित्री ने अपने विवेक व चतुराई के आधार पर पुत्र वति होने का वरदान माँग लेती है। जिसके आधार पर उन्हें सत्यवान के प्राण लौटाने को मजबुर होना पड़ता है। इस तरह यह पर्व जहाँ एक ओर आध्यात्मिकता को दर्शाता है तो दूसरी ओर कार्य कुशलता, विवेकशीलता व स्त्री की चतुराई का पक्ष भी प्रस्तुत करता है जो स्त्रियों के लिये प्रेरणा दायक माना जा सकता है। जिसे सुहागीन स्त्रियाँ माथे पर सुहाग चिन्ह सिन्दूर के साथ वट वृक्ष के पत्ते सजा वट वृक्ष के तने में कच्चे सुत बतौर पति के रक्षा सुत्र की मनोकामना के साथ पुरे निष्ठा के साथ बाँधती हैं और पूजा अर्चना करती हैं।

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