Tuesday 9 April 2019

दुनिया में फ़ैल रहा ये खतरनाक वायरस, ले चुका अब तक कई लोगों की जान

मेडिकल की दुनिया में एक नया फंगस चिंता का विषय बन चुका है, ऐसा इसलिए क्योंकि इस पर दवाइयां भी बेअसर हैं जिस वजह से यह जानलेवा है। डरावनी बात यह है कि मरीज की मौत के बाद भी यह फंगस जिंदा रहते हुए उसके आसपास की हर चीज पर मौजूद रहता है। कैंडिडा ऑरिस नाम का यह वायरस जहां दुनिया के लिए एक मिस्ट्री बना हुआ है वहीं भारत इससे पिछले 8 साल से जूझ रहा है।

10 में से दो मामले कैंडिडा ऑरिस के

ग्लोबल थ्रेट घोषित किए जा चुके कैंडिडा ऑरिस के केस भारत में साल 2011 से सामने आ रहे हैं, कई स्टडीज के जरिए यह जानकारी सामने आ सकी है। हाल ही में ऐम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों द्वारा मरीजों की प्रोफाइल पर की गई स्टडी में यह बात सामने आई कि अस्पताल में साल 2012 से 2017 के बीच भर्ती हुए मरीजों में से करीब हर 10 मामलों में से दो मामले कैंडिडा ऑरिस के थे।

टीफंगल बेअसर

कैंडिडा ऑरिस से संक्रमित ज्यादातर मरीजों पर आमतौर पर इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऐंटीफंगल्स — Fluconazole (55%) और Voriconazole (35%) का कोई असर नहीं हुआ। इन दवाइयों को मरीजों को तब दिया जाता है जब उन पर ऐंटीबैक्टीरिया दवाइयां असर नहीं करती हैं। कैंडिडा ऑरिस एक ऐसा फंगस है जो आमतौर पर अस्पताल के वातावरण में मौजूद रहता है और कमजोर इम्यूनिटी के मरीजों को अपना शिकार बनाता है।

30 दिन के अंदर मरीजों की मौत

साल 2011 में देश के 27 मेडिकल और सर्जिकल आईसीयू में इस फंगस को लेकर मल्टी-सेन्ट्रिक ऑब्जर्वेशनल स्टडी की गई थी। चंडीगढ़ का द पोस्टग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च इसका कॉर्डिनेटिंग सेंटर था। स्टडी की रिपोर्ट साल 2014 में प्रकाशित की गई थी।

रिपोर्ट में सामने आया कि अप्रैल 2011 से सितंबर 2012 के बीच भर्ती मरीजों में से 6.51 प्रतिशत कैंडिडा ऑरिस से संक्रमित थे। इसके इन्फेक्शन को सिर्फ 27.5% मामलों में ही ठीक किया जा सका जबकि 45% मरीजों को बचाया नहीं जा सका। उनकी मौत 30 दिनों के अंदर हो गई।

अडवाइजरी हो चुकी है जारी

फंगल इन्फेकशन दो प्रकार के फंगस के ग्रुप के कारण होते हैं: ऐल्बिकैंस (albicans) और नॉन-ऐल्बिकैंस (non-albicans)। ऐल्बिकैंस पर ऐंटीफंगल का असर होता है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि कैंडिडा ऑरिस नॉन-ऐल्बिकैंस कैटगिरी में आता है, यानी ऐसा फंगस जिस पर ऐंटीफंगल दवाई बेअसर है। यही वजह है कि इस फंगस से संक्रमित मरीजों के बचने के चांस बहुत कम होते हैं।

द इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने साल 2017 में सभी अस्पतालों को अडवाइजरी जारी की थी। इसमें कहा गया था कि कैंडिडा ऑरिस नाम के वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा 33 से 72 प्रतिशत है। अस्पतालों को सुझाव दिया गया कि जो मरीज इस फंगस के पॉजिटिव पाए जाते हैं उन्हें अलग कमरों में या फिर इससे पीड़ित अन्य मरीजों के साथ अलग रखा जाए।

डॉक्टरों का कहना है कि इस स्थिति को तब तक गंभीरता से नहीं लिया गया जब तक यह वायरस यूएस में नहीं फैला। गुड़गांव स्थित आर्टेमिस हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर डिविजन के हेड डॉक्टर सुमित रे के मुताबिक 'अगर हमने ऐंटीबायॉटिक्स और ऐंटीफंगल का मिसयूज बंद नहीं किया तो इस तरह के और दवा प्रतिरोधी रोगजनकों को उभरने से रोका नहीं जा सकेगा।'

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